Tuesday, August 2, 2011

वे फरिश्ते थे जहाँ के .....


स्वतंत्रता दिवस की 65 वीं वर्षगांठ पर शहीदों को मेरी सप्रेम श्रद्धांजलि..

वे फरिश्ते थे जहाँ के .....

कोई मज़हब नहीं था, दूजा मकसद नहीं था.
मंजिलें थी आजादी, थी आजादी बस मंजिलें,
और दे रहे थे कुर्बानियाँ ....
वे फरिश्ते थे जहाँ के ......


जोश वो जवानी का, जुनूँ उस अभिमानी का,
कुचले सारे अरमॉ दिल के और कफन भी बाँध लिया.
निकले सारे दीवाने जब रौनक फ़िजा बरसाती थी.
देखने को ये नजारे वक्त ठहर सा जाता था.
जाने क्या थे दीवाने वो, क्या थी उनकी हस्तियाँ ....
वे फरिश्ते थे जहाँ के ......

ये आँधी कब थमेगी, ये तूफाँ कब रुकेगें !
अमन के फूल मेरे गुलशन मे बोलो कब तक खिलेंगे !
अब कहाँ था चैन दिल को अब कहाँ आराम था,
माँ की ममता आँच पर हो ये नहीं मंजूर था,
धन्य थे वे लाल उनके, जो झेल रहे थे गोलियाँ.
वे फरिश्ते थे जहाँ के ......

बड़ी नाजुक उमर थी, पर न मरने की फिकर थी,
वे थे शहजादे दिल के, न झुके थे,
नहीं झुके वे, पर झूल रहे थे फाँसियाँ ...
वे फरिश्ते थे जहाँ के ......
वे फरिश्ते थे जहाँ के ......


-- राकेश झा