Sunday, March 18, 2012

कल जो बारिश हुई, समाँ महकने लगा था

कल जो बारिश हुई, समाँ महकने लगा था

मैं पीता नहीं, पर बहकने लगा था


होने लगी थीं घटाऎं दीवानी, रौनक बिछाए थी बिजली जमीं पर

हवाओं की ईठलाती-बलखाती अंदाज ना पुछो

जिधर से गुजरती नशा ही नशा था ...

कल जो बारिश हुई, समाँ महकने लगा था


बड़ी कौतुहल थी चारों तरफ

परिंदों ने मिलके जब नया गीत छेड़ा

बारिश के लहरों ने सुर को सजाया

वो मोती सी बुँदें थिरकने लगी थीं ...

कल जो बारिश हुई, समाँ महकने लगा था


बड़ी हसीन शाम वो हुई थी

किसी के भी चेहरे पे ना शिकवे गिले थे

मस्ती में मस्ती के सब मतवाले हुए थे

कैसे हुआ ये, ना आये यकीं था ...

कल जो बारिश हुई, समाँ महकने लगा था


चारों तरफ मैंने जब नज़रें फिराई

चलता गया उसकी आगोश तक

देखा तो बस यूँ नजरें हटी ना

ना जाने कितने नगीने लपेटे हुई थी

कँप-कँपाते लबों की सुर्खियों पर

सुर्ख गुलाबों की शोखी रंगाई हुई थी

वो हुस्न-ए-परी, एक भींगी लड़की खड़ी थी ...

कल जो बारिश हुई, समाँ महकने लगा


कल जो बारिश हुई, समाँ महकने लगा था

मैं पीता नहीं, पर बहकने लगा था


- राकेश झा

crazzyrk@gmail.com