सितमगर आँख में भरते थे पानी, आसूं दिखाने के लिए..
हमने खून तक हाज़िर किया, उनकी प्यास बुझाने के
लिए..
वो मेरे गुलशन का ‘फुल’ भी ले गए पत्थर से तोड़
कर,
अपने घर का गुलदस्ता सजाने के लिए..
मेरी हालत जो मेरे तक़दीर ने देखा है..
रात भर वो भी मेरे दर्द पे मेरे साथ ही रोया है..
वो मेरा कातिल कब-तक रहेगा महफूज, मुजरिमों के
पनाहों में,
आएगी एक दिन वो आंधी, उसकी बार्बदी के लिए..
कोई पुछे तो सही बेवफाई क्या है..
उनकी ये कामयाबी हाज़िर है हर जबाबो के लिए..
वो अपना चेहरा कभी आईने में जो देखते होंगे..
दर-बदर भागते होंगे, अपनी सूरत छुपाने के लिए..
ना पूछो की इस बेजान दिल की चाहत क्या है..
हर तम्मना, आरजू, ख्वाइश, हसरत, अब तो राख है..
फिर भी राख और वो ‘पत्थर’ संभाला है मैंने,
खुदा को दिखाने के लिए..
सितमगर आँख में भरते थे पानी, आसूं बताने के लिए
..
- राकेश झा
Very nice nice nice nice sir
ReplyDeleteVery nice nice nice nice sir
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