जरा वक्त गुजर जाने दो,
जिन्दगी का वो रुतवा ना रहा,
अब जीने में वो मजा ना रहा,
सेहत-ए-जिश्म वो हवा ना रहा,
और रिश्तों में वो वफा ना रहा,
शहर-ए-मौसम तो है वही
जानवर तो जानवर ही हैं
पर ये इंसा, वो इंसा ना रहा,
जरा वक्त गुजर जाने दो,
ये रात अंधेरी है.
जरा सुबह हो जाने दो,
अभी नींद बाकी है
थका हुआ है तन-मन भी,
सो लेने दो.
जरा वक्त गुजर जाने दो,
ये क्या हुआ....
ये तो आग की लपटें थी
राख भी अब ख़ाक है,
अब बचा क्या है बचाने को.
जरा वक्त गुजर जाने दो,
खलिश क्यों हो संग-ए-दिल पर,
पर ये दर्द वाहियात सी है,
बेकफन ये अब ये जमीं,
लगती कुछ बेजा़र सी है,
अब्र फलक पर लाल क्यों है,
ओश की बूँदे कहाँ हैं...
और हवा की वो रवानी,
जो थी फिजा की मद़मस्त दीवानी,
वो परों के पंछी कहाँ हैं..
बेमहाबा ये क्या हआ है,
नामाब़र भी कोई नहीं है,
नहीं किसी को ईल्म इसका,
मुसव्विर भी कोई नहीं है,
- राकेश झा
Hi dear bhaiya
ReplyDeletemast hai .......keep it up
i need your all song here .........
ok
wish u best of luck .........
very well written...
ReplyDeletewill be looking for a compilation of all yours..
fare well and good luck..
--rupanu
Bahut Aache......
ReplyDeleterakeshji,
ReplyDeletefinally have found u ! wanna wish u d best... and wanna work with u !
Jai Ho !!!
Shaan
good! keep it up.
ReplyDeleteu will shine.